मन हुआ कुछ
लिख दूं आज
मैं,
ह्रदय के तार
जब हुए छिन्न
तार
पर जाने क्या
था मकसद, शायद
शब्दों का अनशन,
या टूटे हुए
शब्द,
मानस मे द्वंद,
कोई भय,
सोचा क्यों छाप देता
है मनुष्य,
अपने अंतस्त को इन
कोरे काग़ज़ों पर,
अपने मन की परछाईयों को
दूसरी की से
मिलाने को या
सागर की लहरों
को शांत करने
को,
क्यो करता है
वो इस दिखावे
का ढोंग,
क्या इससे आत्माएँ
बदलती हैं?
मनुष्य मे सवेदना
भाव जाग्रत होते
हैं?
या सिर्फ़ आत्म संतुष्टि...
गर बदलती होती कोई
उत्पत्ति तो,
लिख दो आज
अपनी गाथा..
गर समझे कोई
इस हृदय को,
तो पिरो दो
शब्दों की माला,
मैं नही यहा
कुछ कहने को,
मैं नही यहा
परिवर्तन करने को..
बस......
मन हुआ कुछ
लिख दूँ आज
मैं,
ह्रदय के तार
जब हुए छिन्न
तार...